बिना प्रतिबंध के हम मानते ही नहीं, जहां-तहां देखो, पान-गुटखा खाकर गंदगी मचाते फिरते हैं. तो क्या अब धार्मिक स्थलों से उपदेशों द्वारा कहलाना शुरू करना होगा कि थूकने से दरिद्रता आती है? पूरे देश में थूकने पर पाबंदी क्यों नहीं लगती? कैसा हो अगर दोषियों द्वारा फैलाई हुई गंदगी उन्हीं से साफ करवाई जाए? ऐसा इसलिए जरूरी हो गया है क्योंकि पान की पीक से सनी दीवारें अब कहां नहीं दिखतीं?
पहले इन तथ्यों पर गौर करें – महाराष्ट्र सरकार हर साल 3000 करोड़ रुपये तंबाकू से होने वाली बीमारियों पर खर्च करती है; झारखंड में बोकारो के चास इलाके में एक गुटखा गैंग लोगों को इससे होने वाली बीमारियों के बारे में बताता है; थूक की हानियों के कारण अनेक देशों में सार्वजनिक स्थलों पर थूकने पर प्रतिबंध है और इसका उल्लंघन करने पर भारी जुर्माने की व्यवस्था है; सिंगापुर, स्पेन के बार्सीलोना शहर और अमरीका के कई प्रांतों में थूकने पर पाबंदी है; भारत के भी कुछ शहरों में सार्वजनिक स्थलों पर थूकने पर प्रतिबंध और जुर्माने की व्यवस्था है परंतु परिणाम नगण्य ही हैं.
एक पान मसाला कंपनी ने तो अखबारों के पहले पन्ने और शहरों की होर्डिंग्स पर हद कर दी. किसी ने सपने में भी नहीं सोचा था कि जेम्स बांड की भूमिका निभाने वाले पियर्स ब्रॉसनन पान मसाला का विज्ञापन करेंगे. अलबत्ता पियर्स ब्रॉसनन जानते भी नहीं होंगे कि पान मसाला होता क्या है और न ही ज्यादातर पान मसाला खाकर थूकने वाले उन्हें जानते होंगे. बहुत पहले पान मसाला का विज्ञापन अभिनेता शम्मी कपूर करते थे. उन्हें इसके लिए बड़े भाई राज कपूर से डांट भी लगी थी. शाहरुख़ खान से लेकर अजय देवगन तक ऐसे विज्ञापनों में आते रहे हैं. करोड़ों के खर्च से हमारे शहरों को खूबसूरत बनाने वाली योजनाएं वहां हार जाती हैं जहां पान व गुटके की पीक फेंकी जाती है.
कैसे लगे अंकुश, प्रशासन कितनी सख्ती बरते, क्या हो कार्रवाई का पैमाना? पहले तो आपको यह समझना होगा कि पान-गुटखा चबाना आपके स्वास्थ्य के लिए घातक हो सकता है. और उसे चबाकर थूकना अन्य लोगों को बीमारियों के नरक की ओर ले जाता है. प्रिवेंशन आफ स्पिटिंग इन पब्लिक प्लेस या एंटी-लिटरिंग या फिर थूकना निषेध अधिनियम जैसे क़ानून कई राज्यों में हैं. लेकिन अब इन्हें धारदार बनाना आपके हाथ में है.
लाखों लोगों को पान और गुटखा चबा कर जहां-तहां थूकने की पुरानी आदत है. बदलाव की लहर पर सवार होकर कई राज्यों में तरह-तरह की सरकारें आईं और चली गईं लेकिन लोगों का थूकना जारी है. चाहे महाराष्ट्र हो या उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश हो या पश्चिम बंगाल, हिमाचल प्रदेश हो या दिल्ली, लोगों की यह आदत जुर्माना वसूली के बावजूद जस की तस है. लोग नहीं सुधरेंगे चाहे उनके पान-गुटखे की पीक की वजह से हावड़ा ब्रिज को ही क्यों न जंग खा रहा हो.
सार्वजनिक स्थलों पर थूकने पर रोक लगाने के लिए देश में कानून बनाए जाने की मांग संसद में भी उठी जब लोकसभा में कहा गया कि तपेदिक यानी टीबी की बीमारी के संक्रमण में थूकने की खराब आदत की बड़ी भूमिका है. गौरतलब है कि भारत सरकार ने साल 2022 तक देश से इस बीमारी को समाप्त करने की योजना बनाई है क्योंकि यह बीमारी देश के सकल घरेलू उत्पाद पर भी असर डाल रही है.
वैसे, राज्य सभा में भी थूकने का मामला 2016 में गरमाया था जब सांसदों ने सार्वजनिक स्थानों पर थूकने की आदत पर लगाम लगाने के लिए कदम उठाने की बात कही थी. कुछ सांसदों ने यहां तक कहा था कि खुले में थूकने की आदत को खुले में शौच जाने की आदत की तरह डील किया जाना चाहिए क्योंकि थूकने की आदत भारत की इंक्रेडिबल इंडिया की छवि के साथ मेल नहीं खाती.
कई शहरों में, जैसे मुंबई या शिमला, वहां की नगरपालिकाओं ने जुर्माने की व्यवस्था की हुई है. इससे सरकारी खाते में पैसे तो बरस रहे हैं, लेकिन लोग पैसा देने के बाद भी थूक रहे हैं. मुंबई हाई कोर्ट ने तो एक बार टिप्पणी कर डाली कि “थूकना भारतीय लोगों की खास आदत है.”