समय रहते बच्चे के मन की बात जानना आवश्यक

अपने बच्चे (children) की मन की बात समझना आपके लिए महत्वपूर्ण है. यह आप जितना जल्दी समझने लगें उतना बेहतर. इस सम्बन्ध में दो घटना का जिक्र आवश्यक है.

अपने बच्चे की तस्वीरें सोशल मीडिया पर और व्हाट्सऐप स्टेटस पर डालते आलिया की मां – रीता, फूले न समाती थी.

लोगों की शुभकामनाएं बटोरते और लोगों का शुक्रिया अदा करते कुछ महीने यूं ही गुजर गए जब एक दिन अचानक ऑफिस से फोन आया कि आपका वर्क फ्रॉम होम (work from home) खत्म हो रहा है और जल्द ही आपको वापिस ज्वाइन करना है.

फोन रखते ही रीता की हालत खराब हो गई. उसे चिंता होने लगी कि आलिया की देखभाल के लिए घरेलू कामगार रखना पड़ेगा. घर में चर्चा होने लगी कि घरेलू कामगार बच्चे का कितना ख़याल रख पाएगी.

बच्चे की सही देखभाल के लिए तब रीता ने अपने आसपास की कामकाजी महिलाओं से बात की जिनके बच्चे अभी छोटे थे. अलग-अलग फीडबैक से वह जान पाई कि मोहल्ले के कई बच्चे क्रेच (crech) में जाते थे.

आलिया की मां ने भी क्रेच का ही रास्ता अपनाया. लेकिन, वहां आलिया कम्फर्टेबल महसूस नहीं कर पा रही थी. क्रेच के अलावा डे बोर्डिंग (day boarding) भी आजमाया गया, पर आलिया को अपना घर ही पसंद था.

आलिया परेशान दिख रही थी; वह न तो ढंग से खाना खाती, न सोती, ना पढ़ती और न ही किसी बच्चे के साथ खेलना पसंद करती थी.

अंत में उसकी मां ने नौकरी छोड़कर घर पर ही रहने का फैसला लिया, और अपने आपको समझाया कि हमारा करियर हमारे लिए जरूरी तो है लेकिन बच्चों के स्वास्थ्य, मानसिक व शारीरिक विकास से ज्यादा नहीं.

अब आलिया में महत्वपूर्ण बदलाव दिख रहे हैं. वह हंसमुख, मिलनसार हो गई है, और पढ़ाई में अच्छा प्रदर्शन कर रही है.

आलिया की मां समझ पाई कि हर बच्चे का स्वभाव अलग होता है. समय रहते हम यदि अपने बच्चे के मन की बात जान पाएं तो अवश्य ही हम उन्हें अच्छा जीवन दे पाएंगे.

Children in work from home

वहीं एक और काउंसलिंग के दौरान अमन से मुलाकात हुई. अमन तीन साल का बच्चा है जो अभी अपनी बातें ठीक से बोल नहीं पाता. उसके माता-पिता ने डे बोर्डिंग का ऑप्शन चुना.

क्योंकि मां-बाप दोनों ही वर्किंग (working parents) हैं, और वे कितनी भी जल्दी करें, घर लौटते उन्हें साढ़े पांच बज ही जाते हैं.

शुरू में तो अमन काफी रोता था, पर धीरे-धीरे अब वह खुद को प्ले स्कूल और उसके बाद डे बोर्डिंग में काफी अच्छी तरह एडजस्ट कर पाया है.

अमन के लिए तीन-चार डब्बों में फल, खाना, बिस्किट, ड्राई फ्रूट एवं दूध भी देना पड़ता है. एक-दो जोड़े कपड़े, तौलिया, चप्पल जैसी तमाम चीजें अमन की मां को तैयार कर डे बोर्डिंग के लिए देना होता है.

पहले तो वह थोड़ा चिड़चिड़ा हुआ, पर अब अमन ठीक है. कभी जब वो सो रहा होता है, तब उसे उठाकर ले जाना मुश्किल होता है.

उसकी मां ने हंस कर बताया कि अमन कभी-कभी रविवार को भी अपनी डे बोर्डिंग जाने की जिद करता है.


भारत बोलेगा: जानकारी भी, समझदारी भी