अभी हम सिर्फ 21वीं सदी में ही पहुचे हैं. शायद कुछ सदियां और लग जाएं औरत और मर्द के बीच के अंतर को मिटने में. हर औरत या लड़की की ज़िन्दगी में आए दिन कुछ ऐसी घटना हो जाती है जब उसे ये अहसास होता है कि वो एक औरत है.
यह अहसास कि मैं एक लड़की हूँ, मुझे हाल में भी ज्ञात हुआ. मैं अपने एक मित्र से मिलने गई थी. कॉलेज कैंपस में ही हम ऐसे मगन हुए कि समय का अंदाज़ नहीं लगा. जब घड़ी पर नज़र गई तब रात का 11 बज रहा था. छोटे शहर में देर शाम बाहर निकलने पर लड़की को गलत आंक लिया जाता है, फिर डर खुद ब खुद लगना लाज़मी है.
एक अनजान पुरुष हो या पुलिस वाला, सभी आपको लुक देते हैं. इज़्ज़त सिर्फ औरतों से ही क्यों जुड़ी होती है? सारे डर हमारे लिए ही क्यों हैं? एक पुरुष की इज़्ज़त नहीं होती, क्या? उन्हें क्यों नहीं डर लगता? रात की चांदनी हम क्यों नहीं महसूस कर सकते? ठंडी और सुकून भरी बयार हमारे लिए भी तो है. रात की आज़ादी हमें क्यों नहीं? – दीप्ति विक्टर