भारत गांवों का देश है, जहां एक गांव पिपरा (Pipra village) भी है. यह मेरा गांव है.
पूरे भारत की आत्मा गांवों में बसती है. गांव में आज भी कोयल की कू और चिड़ियों की चहचहाहट से ही सुबह की शुरुआत होती है जो कालांतर तक रहती है.
बुंदेलखंड क्षेत्र के झांसी (Jhansi) जिले का मेरा पिपरा गांव आज भी एक पहाड़ से घिरा हुआ है. इसकी बड़ी-बड़ी चट्टानें मेरी यादों का अटूट हिस्सा हैं.
मेरा गांव बुंदेलखंड क्षेत्र के ऐसे अंचल में बसा है जहां खनिज संपदा का अपरम्पार भंडार है.
बुंदेलखंड (Bundelkhand) का नाम लेते ही लोगों के मन में यह प्रश्न आता है कि क्या यह वही बुंदेलखंड है जहां सूखा पड़ा रहता है!
गौरतलब है कि बुंदेलखंड में पानी की नहीं बल्कि संसाधन की कमी है.
इस शंका को दूर करते हुए आगे यह भी बताना चाहूंगा कि बुंदेलखंड का एक जिला और भी है जिसे ललितपुर (Lalitpur) कहते हैं जहां सबसे ज्यादा बांध हैं.
मेरे गांव में मातारानी का एक मंदिर (temple) है जो कि काफी ऊंचाई पर पिपरा पहाड़ी पर बना है.
इस मंदिर से गांव के सभी घर आसानी से देखे जा सकते हैं.
मंदिर तक जाने के लिए लगभग 150 से ज्यादा सीढियां है जहां हम सभी भाई-बहन बचपन में सबसे पहले ऊपर पहुंचने की शर्तें लगाया करते थे.
मेरे गांव की सबसे ख़ास बात यह भी है कि यहां झांसी जिले के दो प्रसिद्ध हाट (गांव का बाजार) लगते हैं. इसमें पहले नंबर पर पिपरा और दूसरे नंबर पर राजापुर (Rajapur) हाट हैं.
मेरे दादा जी बताते हैं कि अपने गांव की हाट में लगभग 40 से ज्यादा गांवो के लोग शाक-सब्ज़ी लेने आते हैं.
मुझे आज भी वो दिन बहुत याद आते हैं जब हम गांव में अकेले पीपल की छांव में बैठा करते थे.
यह छवि और एहसास जन्मों जनम भुलाये नहीं भूलेगा.