एक चाय की प्याली पर बात छिड़ी तो उन्होंने पूछा, “तुम करती क्या हो?”
मैंने बताया, “मैं ब्रांड मेनेजर हूँ. लोगों के काम को एक पहचान देती हूँ.”
“अच्छा ये तो सीरियस काम है. कोई वेबसाइट है क्या?”
इसके बाद दो चार मिनट के लिए सन्नाटा था. फिर और कुछ मिनट की शांति.
“ये सब तुम करती हो? और वेबसाइट किसने बनाई?”
“जी हां. सब काम मेरा ही है. हमारी टीम है.”
“ओ आई सी. अच्छा काम कर रही हो. यह तो मुझे पता ही नहीं था.”
ऐसा अक्सर होता है मेरे साथ. आपके साथ भी होता होगा. आपके अपने करीबी लोग भी नहीं जानते होंगे कि रोज़ दफ्तर में बैठकर आप क्या-क्या करते हैं. और वे आपके काम को हंसी में भी उड़ा देते हैं.
अपनी मेहनत को सही पहचान देने के लिए एक वेबसाइट आजकल अनिवार्य हो गई है. सही भी है. ये है डिजिटल एज. अगर आपकी डिजिटल पहचान नहीं तो बहुत कम लोग आपके काम को पहचानते हैं. और अगर आपके पास इंटरनेट पर एक डॉट कॉम वाला पता है तो फिर वाह वाही की दुकान लग जाती है.
आजकल जहां अच्छे-अच्छे जानेमाने ब्रांड्स भी वेब की दुनिया में अपनी पहचान बनाने की भरपूर कोशिश कर रहे हैं, वहीं दूसरी और हर गली में एक स्टार्ट-अप चल रहा है. वो अपनी अलग पहचान बनाना चाह रहा है. ये टूल्स ही तो हैं जो आपको और आपके ग्राहक या क्लाइंट को करीब लाते हैं.
कुछ लोग मुझे ऐसे भी मिले जो कहते हैं कि हमें ज़रूरत नहीं है इन सब चोंचलों की, हम खुद ही अपनी पहचान बना लेंगे. लोग जब जानेंगे कि हमारा प्रोडक्ट अच्छा है तो खुद ही खींचे चले आएंगे.
ये भी सही है. मगर वेब पर आपकी उपस्थिति सिर्फ चोंचलेबाजी नहीं होती है. वो बस एक विजिटिंग कार्ड जैसा होता है जो आप किसी को अपने बारे में जानकारी देने के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं. इसमें कोई बुराई नहीं है.
एक वेबसाइट होना अब आवश्यक हो गया है. याहू, गूगल, अमेज़न और अन्य सभी प्लेटफार्म की वजह से इंटरनेट अब काफी हद तक सब के घरों में प्रवेश कर चुका है. बाकी कसर हमारे स्मार्टफोन ने पूरी कर दी है.
वेब प्रजेंस आपकी मेहनत को आम आदमी से लेकर हाई एंड घरों तक पहुंचाता है. आप चाहे होम बेकर हों, पब्लिशर हों, स्पोर्ट्समैन हों या एक्टर, एक वेबसाइट होना आपकी पहचान को चार चांद लगा देता है.
अगर आपने अपनी वेबसाइट के बारे में अभी तक नहीं सोचा है तो जल्दी प्लान बनाइए. अपनी वेबसाइट के जरिये डिजिटल इंडिया का हिस्सा बनिए. तैयार कीजिए अपना खुद का इलेक्ट्रॉनिक विजिटिंग कार्ड.