हमारे घर के खानसामे से जब मैंने कहा, “ज़रा मेरे दफ्तर चले जाओ. वहां मेज़ पर एक गोल-गोल आकार का काला-लाल रंग का एक यंत्र सा होगा, उसमें एक तार सी जुड़ी होगी, वो लेते आना.”
फिर ऑफिस के एक कर्मचारी को मैंने फोन करके कहा कि मेरे द्वारा भेजा गया जो आदमी आए उसे मेरे कंप्यूटर से जुड़ा माउस दे देना.
खानसामा मेरे पास लौटा और बोला, “सीधे-सीधे कहते न कि आपको माउस चाहिए था.”
हा हा हा, मैं तो चौंक गई और पूछ बैठी, “आप माउस कैसे जानते हैं?”
उसने कहा, “में मैनेजमेंट इंस्टिट्यूट में काम करता था. वो तो किस्मत ने रुख बदला तो खाना बना रहा हूँ. वैस पढ़ा लिखा हूँ और दिवंगत कांग्रेस नेता शिला दीक्षित जी के साथ मेरी तस्वीर भी है. डिजिटल ज़माने का हूँ मैडम, अंग्रेजी भी समझ लेता हूँ, बस बोलने में ज़रा दिक्कत आती है.”
सुन कर अच्छा भी लगा और बुरा भी. और सबसे मजेदार बात ये कि उसने खुद को डिजिटल एज का बताया.
पूरा ग्रामीण भारत आज एक अच्छा मोबाइल हैंडसेट लिए घूमता है, बड़ा स्क्रीन, टच फोन, लेटेस्ट टेक्नोलॉजी तो होनी चाहिए, नौकरी भले ही न हो.
हमारी केंद्र सरकार के चलते लोगों को जबरन भी नई टेक्नोलॉजी को अपनाना पड़ रहा है.
वहीं शहरी भारत आज डिजिटल का शिकार हो रखा है. सब तरफ विडियो एडवरटाइजिंग का जलवा बिखरा है.
आप कोई वेबसाइट या टीवी या स्मार्टफोन बाद में खोलते हैं, विडियो पहले चल पड़ता है. विडियो के पहले दो प्रचार होंगे, विडियो के दौरान एक तो ज़रूर होगा और विडियो खुद भी किसी वस्तु का प्रचार होगा.
प्रचार मीडियम में विडियो का इस्तेमाल बड़ी तेज़ी से आग की तरह फैल गया है. रेडियो, न्यूज़पेपर, पोस्टर वगैरह कहीं पीछे रह गए हैं.
इसका एक बड़ा कारण ये भी हो सकता है कि विडियो सबको दिखाना आसान होता है और लोगों तक उसकी पहुंच तगड़ी होती है.
देखा हुआ ज्यादा याद रहता है. इसलिए डिजिटल एडवरटाइजिंग के हर पहलु को आज इस्तेमाल किया जा रहा है.
रोज़ करीबन 250 से 300 मिलियन लोग डिजिटल एडवरटाइजिंग से ऑनलाइन वीडियोज देख रहे हैं.
आईएमएआई यानी इंटरनेट एंड मोबाइल एसोसिएशन ऑफ इंडिया और इंडियन मार्केट रिसर्च ब्यूरो की एक रिपोर्ट के अनुसार डिजिटल एडवरटाइजिंग का कुल खर्चा 1.5 बिलियन से भी अधिक है.
बड़ी छोटी सब कंपनियां अब एक बजट बना कर चलती हैं, जिसमें डिजिटल बजट होता ही है. नई सरकार के डिजिटल इंडिया प्रचार से शायद अब हमारे गांव शहर बन जाएं. वहां भी सुविधाएं पहुंचने लगें.