शोभा,
याद है, हमलोग आठवीं क्लास में मिले थे और एम.ए. तक साथ पढ़े. मैंने वही विषय लेकर आगे दसवीं के बाद पढ़ना पसंद किया जो तुमने लिया था. तुम्हें भी वही लंच पसंद आता था जो मुझे. याद है न !
स्कूल की क्या ज़िन्दगी थी ! अचानक तुम्हारी शादी हुई और मेरी भी. हम दोनों ही तब नवीं क्लास में थे. क्या संयोग था, क्या प्रभु कृपा थी, क्या हमलोगों की दोस्ती थी ! जब भी हम मिलते, अच्छी-अच्छी बातें करते.
शोभा, इन दिनों तो बच्चों के बीच में पक्की दोस्ती होती ही नही है. अगर होती भी है तो भड़काऊ, क्षणिक और अच्छे बच्चों को बिगाड़ देने वाली. तुम्हारी बेटी डॉली ने कहा, “मौसी, आप लोगों की जाति भी अलग है फिर भी 48 साल की इतनी गहरी दोस्ती कैसे चल रही है ?” मैंने कहा, जब तक सांस है तब तक हमारी दोस्ती बनी रहेगी.
हमलोगों की दोस्ती और भी गहरी हो गई जब तुम्हें जुड़वां बच्चे आपरेशन से हुए. तब तुम्हारी तबियत काफी खराब हो गई थी. क्या संयोग था … तब मेरी बेटी एक महीने की थी. मैं तुम्हारे बच्चे को अस्पताल में तीन बार अपना दूध पिलाने जाती थी. मेरी बच्ची घर पर रोती थी, लेकिन सातों दिन मैंने दूध पिलाया. मैं जितने देर दूध पिलाती, तुम इस संयोग पर रोती … खुशी से … संतोष से.
तुम्हारे घर मैं एक साल पहले गई थी. तुम्हारी बहू आई तो उसने प्रणाम करते हुए कहा कि आप तो मेरी सास से भी बढ़कर हैं क्योंकि मेरे पति का जीवन आपके दूध से मिला है. तब दोस्ती और भी गाढ़ी हो गई. आज मेरे और तुम्हारे बच्चे जब हमारी दोस्ती की बातें करते हैं तो कितना सकून मिलता है.
शोभा, हम दोनों ने शैक्षणिक संस्था में ही काम किया और साथ-साथ सेवानिवृत भी हुए. हम दोनों आज भी मौज मस्ती से बातें करते हैं. भगवान करे हम लोगों की दोस्ती बनी रहे और हम एक दूसरे का साहस बढाते रहें. और हमलोगों का परिवार हँसता, खेलता और स्वस्थ, सुखी रहे.
तुम्हारी कृष्णा | 13 जून, 2011 | मुजफ्फरपुर
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फोटो के विषय में: एक दिन स्कूल से जल्दी छुट्टी हो गई थी और हमलोग स्टूडियो चले गये फोटो खिंचवाने. आज वही ‘गलती’ यादगार बनी है.