नया साल (New Year) शुरू हुआ नहीं कि नए संकल्पों की सूची का भार पहले ही महसूस होने लगता है. न्यू ईयर रिज़ॉल्यूशंस (resolutions) के बारे में अक्सर मज़ाक किया जाता है कि ये वो संकल्प होते हैं जो कभी पूरे नहीं होते. संभवतः ऐसा होता भी है.
जोश-जोश में अक्सर हम ऐसे संकल्पों पर अड़ जाते हैं जिन्हें पूरा करना भारी पड़ने लगता है.
गौरतलब है कि नया साल नई उम्मीदों के साथ आता है और कहीं न कहीं हम यह चाहने लगते हैं कि हमारी हर वो आकांक्षाएं पूरी हों जो पहले अधूरी रह गईं.
इन उम्मीदों को पूरा करने की चाह में कई दफा हम खुद को चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों में भी झोंक देते हैं. किसी-न-किसी वजह अपने संकल्पों पर टिके न रहने के कारण फिर निराश भी हो जाते हैं, और जब तक फिर एक नया साल नहीं आता उन संकल्पों को कहीं भूल जाते हैं.
गलती अक्सर यह हो जाती है कि हम अपनी रिज़ॉल्यूशंस यानी संकल्पों पर अवास्तविक मानक निर्धारित कर देते हैं. हम ये समझ लेते हैं कि जो आंखों को दिख सके वही सफलता है. अपने लक्ष्य की तुलना दूसरों से करने लग जाते हैं और अपनी उपलब्धियों की सराहना नहीं कर पाते.
जैसे सबकी ज़िंदगियां अलग हैं, सभी के संघर्ष भी अलग-अलग हैं
किसी को फरारी और पोर्शा भी कम लगती हैं और किसी के लिए एक और दिन जी पाना भी किसी जंग से कम नहीं होता.
आइए, इस नए साल में कुछ ऐसे संकल्पों को अपनाने की कोशिश करें जिन्हे पूरा करना हमारा लक्ष्य नहीं बल्कि हमारा व्यक्तित्व और जीवनशैली भी बन पाए.
कोविड के दौर में लगभग हर किसी ने किसी-न-किसी अपने को खोया है, व्यापार में नुकसान झेला है और आर्थिक चुनौतियों से गुज़रे हैं.
जहां एक तरफ व्यक्तिगत नुकसान हुआ है वहीं सामाजिक और राजनीतिक पहलू पर भी कई तरीकों से निराशा हाथ लगी.
यदि आज हम जीवित हैं, जिनसे हम प्यार करते हैं वे स्वस्थ हैं, अगले भोजन की चिंता नहीं करनी पड़ रही है, तो अपने विशेषाधिकारों यानी प्रिविलेजेज़ को स्वीकारें.
दुनिया-जहान की खबर होना, चैन की नींद पाना, दिन में एक वक़्त मुस्कुरा पाना भी आपकी उपलब्धियां हो सकती हैं.
खुद से वादा कीजिए कि अपनी किसी भी उपलब्धि या अपने अस्तित्व को मामूली नहीं समझेंगे. अपने स्वास्थ्य एवं इम्यूनिटी का ख़याल रखने का हरसंभव प्रयास करेंगे. दिखावट, जाति, लिंग, धर्म या किसी भी पैमाने के आधार पर द्वेष का हिस्सा बनने से बचेंगे. खुद को रचनात्मक रूप से व्यस्त रखने की कोशिश करेंगे.
भारी भरकम संकल्पों की जगह व्यावहारिक एवं शार्ट टर्म गोल्स बनाएंगे जिन्हें पूरा करने के लिए आप मानसिक और शारीरिक रूप से तैयार हों.
दूसरों से पहले खुद को माफ़ करना सीखिए. खुद से प्यार कीजिए क्योंकि आप अपने प्यार के सबसे पहले हक़दार हैं. अपने और दूसरों के भावों की सराहना कीजिए- चाहे वह भाव दुःख का हो या सुख का.
कभी-कभी खुश रहना बहुत आसान हो सकता है और ज़िंदगी हमारी कल्पना से कई ज़्यादा हसीन हो सकती है. यकीन करें सब मुमकिन है.