हॉकी के जादूगर के साथ बार-बार क्यों
हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद के साथ ऐसा बार-बार क्यों होता है. देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न की घोषणा होती है और तमाम खेल प्रेमियों के मुंह से बस आह निकल कर रह जाती है.
2014 में क्रिकेट लीजेंड सचिन तेंदुलकर को जब भारत रत्न देने की घोषणा की गई तो इस फैसले को राजनीति से प्रेरित बताया गया और साथ ही कहा गया कि यदि किसी खिलाड़ी को भारत रत्न दिया जाना था तो उस पर पहला हक़ ध्यानचंद का बनता था.
2014 के बाद पांच साल गुजर चुके हैं और शायद ही किसी को याद हो कि देश में कोई हॉकी का जादूगर भी था जिसका पूरी दुनिया सम्मान करती है.
2016, 2017 और 2018 में मौजूदा सरकार ने किसी को भी भारत रत्न नहीं दिया और इस बार पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी, दिवंगत संगीतकार एवं गीतकार भूपेन हजारिका और समाजसेवी नानाजी देशमुख को भारत रत्न से अलंकृत करने की घोषणा की गई है. लेकिन ध्यानचंद को एक बार फिर भुला दिया गया.
यह स्थिति तब है जब सरकार में खेल मंत्री एक खिलाड़ी है और उन्होंने ओलंपिक में रजत पदक जीता है. ध्यानचंद को फिर नजरअंदाज किए जाने पर सामान्य प्रतिक्रिया यही थी कि ध्यानचंद वोट बैंक नहीं हैं और उन्हें भारत रत्न देने का कोई फायदा नहीं है.
जब 2014 में सचिन को भारत रत्न दिया गया तो उस समय आलोचना तो हुई लेकिन यह उम्मीद बंधी कि अब नहीं तो अगले साल ध्यानचंद भारत रत्न बन जाएंगे. जब अगले साल भी कोई घोषणा नहीं हुई तो ध्यानचंद के पुत्र अशोक ध्यानचंद ने इस पर आवाज उठाई और दिल्ली में बाकायदा जंतर मंतर पर इस मांग को लेकर मार्च निकाला गया, राजनीतिक हलकों में आश्वासन भी दिए गए लेकिन स्थिति वही ढाक के तीन पात रही.
जिस खिलाड़ी के नाम पर 29 अगस्त को खेल दिवस मनाया जाता है और जिनके नाम पर दिल्ली के नेशनल स्टेडियम का नाम मेजर ध्यानचंद नेशनल स्टेडियम रखा गया है उसी खिलाड़ी को भारत रत्न नहीं.
सचिन को भारत रत्न बने पांच साल गुजर गए है और अब तो ध्यानचंद के पुत्र अशोक ने भी इस पर चर्चा करना बंद कर दिया है. शायद वह भी अब तमाम उम्मीद छोड़ चुके हैं.