भारत बोलेगा

कंचा गोली खेलने की आज़ादी

कभी गोली खेली है? इसे खेलना अच्छा नहीं माना जाता न? इस तरह के भेद-भाव से ही क्लास और कास्ट का अंतर पैदा होता है.

कहते हैं इसे गलियों और कस्बों में गंदे बच्चे खेलते हैं. काश आपने कभी खेली होती कांच की गोलियां ! चली होती फिर आपके साथ भी वो नंगे खेलते हुए बच्चों की टोलियां !

जुआ खेलना सही और गोली खेलना गलत कैसे हो सकता है जनाब ! आपने तो उन कांच की गोलियों की ठनक सुनी ही नहीं, उनके रंगों की चमक देखी ही नहीं.

राजगढ़ में तो मकर सक्रांति पर कांच की गोलिया खेली जाती थीं. पुराने से पुराने इतिहास में कांच की गोलियों का जिक्र है.

जिन्होंने कंचे खेले हैं वे तो समझते हैं कि …ऐसा शायद ही कोई होगा जिसने बचपन में कंचे न लड़ाए हों…

देशी भाषा में कांच की गोलियों को अंटी या कंचा भी कहते हैं.

एक तो मुहावरा भी है – कंचे लड़ाना. इसका अभिप्राय है उम्र बीतने के बावजूद बचपना कायम रहना.

तो आप भी रखिए न अपना बचपना कायम !

कम-से-कम अपने बच्चों को गोली खेलने दें, अगर उनका जी चाहे.

बच्चों को मन अनुसार खाने, खेलने और गाने की बेपरवाह आज़ादी होनी चाहिए. कांच की रंगीन गोलियों से खेलने का मजा ही कुछ और है !

और अपनी गलियों में गोलियों के खेल में चाहे कोई कितनी गोलियां जीते, जीत तो आख़िरकार खेल की ही होती है.

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मार्बल कप

अगर आपने कहीं किसी कोने में लाल, हरी, नीली कांच की गोलियों को छिपाया हुआ है तो उठिए, उन्हें निकालकर अपने शर्ट से पोंछिए और लगाईये निशाना ! लौटिये बचपने में.

क्यूँ, क्रिकेट में सुना नहीं – अजहरुद्दीन कांच की गोलियों से ही निशाना लगाते लगाते इतने अच्छे क्षेत्ररक्षक बने. मैदान के किसी भी भाग से गेंद फेंकते तो सीधा विकेट पर ही लगता था.

एकदम छोटे बच्चों को गोलियों से दूर रखिएगा, क्यूंकि कभी कभी वे इसे गलती से निगल भी लेते हैं.

और हां … पता है गुच्ची क्या है? गुच्ची सिर्फ एक मशहूर ब्रांड ही नहीं है. गोली खेलने के लिए ज़मीन में बनाये गए गड्ढे को भी गुच्ची कहते हैं.


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