भारत की डेविस कप के क्वालीफाइंग राउंड में इटली के हाथों 1-3 की पराजय के साथ भारतीय टेनिस में एकल खिलाड़ियों का अकाल फिर सामने आ गया है.
यह सवाल भारतीय टेनिस में वर्षों से चक्कर काट रहा है कि अच्छे एकल खिलाड़ी कहां से ढूंढे जाएं और यह तलाश समाप्त होने का नाम नहीं ले रही है.
इटली के खिलाफ कोलकाता के साउथ क्लब के ग्रास कोर्ट पर खेले गए डेविस कप के क्वालीफाइंग राउंड भारत के दोनों एकल खिलाड़ी प्रजनेश गुणेश्वरन और रामकुमार रामनाथन अपना एक भी एकल मैच जीतने में नाकाम रहे.
भारत ने इस मुकाबले में जो एकमात्र मैच जीता वह युगल में रोहन बोपन्ना और दिविज शरण का जीता गया मैच था.
एक दिलचस्प तथ्य है कि भारतीय टीम के गैर खिलाड़ी कप्तान महेश भूपति युगल विशेषज्ञ हैं और अपने करियर के दौरान उनकी छवि शीर्ष युगल खिलाड़ी की रही है.
इसके साथ एक तथ्य और भी है. कई वर्ष पहले भूपति ने एक बहुराष्ट्रीय कंपनी के साथ भारत का एकल ग्रैंड स्लेम चैंपियन तैयार करने के लिए बड़ा करार किया था लेकिन यह अभियान कुछ महीने में ही समाप्त हो गया.
उसके बाद से आज तक भारतीय टेनिस में ऐसी कोई कोशिश नहीं की गई कि एकल के अच्छे खिलाड़ी तैयार किए जाएं.
रामानाथन कृष्णन, विजय अमृतराज, रमेश कृष्णन, लिएंडर पेस और सोमदेव देववर्मन ने पिछले कई दशकों में एकल की जिम्मेदारी संभाली.
इन खिलाडियों ने डेविस कप में भारत को कई यादगार जीत दिलाई. लेकिन पिछले कुछ वर्षों से भारतीय टेनिस में अच्छे एकल खिलाड़ियों का सख्त अभाव रहा है. अब स्थिति लगातार खराब होती जा रही है.
यूकी भांबरी ने जनवरी 2009 में ऑस्ट्रेलियन ओपन का जूनियर एकल खिताब जीता था और फरवरी 2009 में दुनिया के नंबर एक जूनियर खिलाड़ी बने थे. लेकिन जो उम्मीदें उन्होंने जगाई थीं वे पूरी नहीं हो पाईं.
सोमदेव 2011 में विश्व एकल रैंकिंग में 62वें स्थान तक पहुंचे लेकिन वह किसी भी ग्रैंड स्लेम में दूसरे राउंड से आगे नहीं जा पाए.
साकेत मिनेनी एकल में आए लेकिन जल्दी युगल में चले गए. विजय अमृतराज के पुत्र प्रकाश अमृतराज कुछ साल भारत के लिए खेले. लेकिन उनके पास अमेरिका की नागरिकता होने के कारण उन्हें भारत के लिए खेलना छोड़ना पड़ा.
गुणेश्वरन इस साल ऑस्ट्रेलियन ओपन में तीन क्वालीफाइंग राउंड जीतकर मुख्य ड्रा में पहुंचे. लेकिन पहले दौर में ही बाहर हो गए.
गुणेश्वरन को इससे पहले साल के शुरू में टाटा ओपन महाराष्ट्र में मुख्य ड्रा में वाइल्ड कार्ड प्रवेश मिला था. लेकिन वह पहले ही दौर में बाहर हो गए.
रामकुमार ने 2017 में अंताल्या ओपन में विश्व के आठवें नंबर के खिलाड़ी डोमिनिक थिएम को हराकर तहलका मचाया था और फिर क्वार्टरफाइनल तक पहुंचे थे.
रामकुमार 2018 में न्यूपोर्ट में अपने पहले एटीपी टूर फाइनल में पहुंचे. सोमदेव के 2011 में जोहानसबर्ग के फाइनल में पहुंचने के बाद यह उपलब्धि हासिल करने वाले पहले खिलाड़ी बने. लेकिन वह अपनी कामयाबी को ज्यादा आगे नहीं बढ़ा पाए.
भारत में एकल खिलाड़ी जब ज्यादा सफलता हासिल नहीं कर पाते हैं तो युगल का रुख करने लगते हैं. यह सिलसिला पिछले कई वर्षों से चला आ रहा है.
यूनान जैसे छोटे देश का खिलाड़ी स्तेफानोस सितसिपास ऑस्ट्रेलियन ओपन में 20 बार के ग्रैंड स्लेम चैंपियन रोजर फेडरर को हरा देता है. लेकिन भारत जैसा विशाल देश एक अदद अच्छे एकल खिलाड़ी के अकाल से जूझ रहा है.