वर्ष 1956 के मेलबॉर्न ओलंपिक में चोथे स्थान पर रही और 1951 एवं 1962 में एशियाई खेलों में फुटबाल के ताज पर कब्जा जमाने वाली भारतीय फुटबाल टीम फीफा वरियाता क्रम के अनुसार इस समय 133वें स्थान पर है.
1956 के मेलबॉर्न ओलंपिक में प्रथम एशियाई फुटबाल टीम के रूप में सेमी-फाइनल में खेलने का श्रेय हासिल करने और 1951 में दिल्ली और 1962 में जकार्ता में एशियाई खेलों के फुटबाल स्पर्धा में स्वर्ण पदक हासिल करने वाली भारतीय टीम की आज यह दुर्दशा क्यों है? फुटबाल का मजा लूटने वाले सभी भारतीयों के मन में यह सवाल तीर की तरह चुभ रहा है.
उल्लेखनीय है कि आज भी ओलंपिक स्तर के फुटबाल में एक भारतीय का नाम जगमगा रहा है. वह है भारतीय फुटबाल टीम के सेंटर फारवर्ड खिलाड़ी नेविल डिसूजा.
इस खिलाड़ी का नाम ओलंपिक फुटबाल के रिकॉर्ड बुक में प्रथम एशियाई खिलाडी के रूप में हैट्रिक जमाने का है. 1956 के मेलबॉर्न ओलंपिक फुटबाल के क्वार्टर फाइनल में इस खिलाड़ी के शानदार प्रदर्शन की बदौलत भारतीय टीम मेजबान आस्ट्रेलिया के खिलाफ 4-2 से विजयी रही थी.
भारतीय फुटबाल टीम के स्वर्णीम इतिहास का सफर यहीं नहीं थम जाता है. मलेशिया में प्रतिष्ठित फुटबाल टूर्नामेंट के रूप में आयोजित होनेवाले मरडेका कप में भारत दो बार 1959 एवं 1964 में उप विजेता रहने के साथ ही 1964 में इस्राइल में आयोजित एशिया कप का भी उप विजेता रह चुका है.
1948 से 1960 तक भारतीय टीम नियमित रूप से ओलंपिक फुटबाल में खेलने की योग्यता हासिल करती रही. इसी दौरान भारतीय फुटबाल ने अपने स्वर्णिम दिन भी देखे.
हालंकि पिछले तीन दशकों से भारतीय फुटबाल टीम की सफलता सीमित दायरे में रहकर थम गई है. 1960 से भारत ओलंपिक फुटबाल स्पर्धा में खेलने की योग्यता हासिल नहीं कर सका है और ना ही कभी भारतीय खिलाड़ी विश्व कप फुटबाल में थिरकने का स्वप्न देख सके हैं. 1984 से भारतीय फुटबाल टीम एशिया कप फुटबाल के फाइनल दौड़ में भी प्रवेश नहीं कर पाई है.
इस दौरान भारतीय फुटबाल टीम को अंतिम बार 1982 में दिल्ली में आयोजित एशियाई खेलों के क्वार्टर फाइनल में खेलने का सौभाग्य मिला था जबकि भारतीय टीम को 1970 के बैंकाक एशियाई खेलों के फुटबाल स्पर्धा में कांस्य पदक हासिल करने का गौरव प्राप्त हुआ था. भारतीय जूनियर फुटबाल टीम 1974 में एशियाई युवा फुटबाल चैम्पियनशिप में ईरान के साथ सयुक्त विजेता रही थी. इसके साथ ही भारतीय फुटबाल टीम को तीन बार दक्षेस खेलों के फुटबाल खिताब पर कब्जा जमाने का गौरव हासिल हो चुका है.
सभी भारतीय फुटबाल प्रेमियों के सामने सबसे बड़ा सवाल यह है कि भारत में इस खेल के स्तर को कैसे ऊपर उठाया जाए. इसके लिए पेशेवर प्रबंधन, बेहतर मार्केटिंग, राष्ट्रीय टीमों को अधिक प्राथमिकता और इस खेल का प्रसार बंगाल, पंजाब, केरल और गोवा तक सीमित न रहकर देश के अन्य राज्यों में भी होना चाहिए.
इस खेल के प्रेमियों को शायद यह पता न हो कि इसी देश के कई खिलाड़ियो को एशिया महाद्वीप के सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ियों की सूची में भी शामिल किया जा चुका है. इनमे प्रमुख खिलाड़ी के रूप में जरनैल सिंह, चुन्नी गोस्वामी, पी.के. बेनर्जी, टी. बलराम, पीटर थंगराज, अल्ताफ अहमद, यूसफ खान, प्रसून बनर्जी और अतुन भट्टाचार्य का नाम शामिल है. ये सभी खिलाड़ी एशियाई आल स्टार टीम के सदस्य रह चुके हैं. जरनैल सिंह को एशियाई आल स्टार टीम का कप्तान भी नियुक्त किया गया था. 1970 के बैंकाक एशियाई खेलों में कांस्य पदक हासिल करने वाली भारतीय फुटबाल टीम के राइट बैक खिलाडी सुधीर करमाकर को एशिया का सर्वश्रेष्ठ डिफेंडर घोषित किया गया था.
सबसे उल्लेखनीय है कि भारत में ही दुनिया की द्वितीय सबसे पुरानी डूरंड फुटबाल चैम्पियनशिप 1888 से खेली जाती है. इसके अलावा 1891 से रोवर्स फुटबाल प्रतियोगिता का भी आयोजन हो रहा है.
भारतीय फुटबाल के बारे में इतनी बातें जानने के बाद इस खेल के प्रत्येक प्रेमी को जागना होगा और विश्व कप का स्वप्न देखने वालों को नए सिरे से शुरुआत करनी होगी. तभी फुटबाल बोलेगा. आप ही बताएं क्या हमारा घरेलु फुटबाल घरेलु क्रिकेट से ज्यादा लोकप्रिय नहीं? क्या हर विद्यालय में फुटबाल का ग्राऊंड नहीं? क्या हम फुटबाल तब से नहीं खेल रहे जब रियल मेड्रिड और फीफा का नामोनिशान भी नहीं था? फिर अब हमारी टांगों को क्या हो गया है? बोलो भारत बोलो.
– चैताली दास