इंडियन प्रीमियर लीग (आईपीएल) का 13वां संस्करण वैश्विक महामारी बन चुके कोरोना वायरस के कारण अनिश्चितकाल के लिए स्थगित हो चुका है और अब भारत-चीन तनाव के कारण IPL के टाइटल प्रायोजन पर खतरा मंडराने लगा है.
यदि इस साल आईपीएल का आयोजन नहीं हो पाता है तो भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (BCCI) को 4000 हजार करोड़ रुपये का भारी-भरकम नुकसान हो सकता है.
बीसीसीआई इस साल आईपीएल हर हाल में कराने की जुगत ढूंढ ही रहा था कि भारत और चीन का सीमा का तनाव सामने आ गया.
देश में चीन के सामानों और चीन से जुड़ी हर चीज का बहिष्कार करने की आवाज जोर-शोर से उठ रही है और सोशल मीडिया पर हर तरफ से आवाज आ रही है कि चीन का बॉयकाट किया जाए.
गौरतलब है कि गलवान घाटी में चीनी सैनिकों के साथ झड़प में 20 भारतीय जवान शहीद हो गए जिसके बाद देश भर में चीनी कंपनियों और उसके उत्पादों के बहिष्कार का सिलसिला जोर पकड़ चुका है.
चीनी कंपनी वीवो है आईपीएल की टाइटल प्रायोजक
चीनी मोबाइल हैंडसेट निर्माता कंपनी वीवो ने पहली बार वर्ष 2015 में दो वर्षों के लिए आईपीएल का टाइटल प्रायोजन हासिल किया था.
फिर वीवो ने वर्ष 2017 में पांच साल की अवधि के लिए आईपीएल के टाइटल प्रायोजन के अधिकार हासिल किए थे जिसके लिए कंपनी ने बीसीसीआई से 2199 करोड़ रुपये का करार किया था. (Will Vivo remain an IPL sponsor?)
बीसीसीआई पर दबाव बढ़ रहा है कि वीवो को टाइटल प्रायोजन से हटाया जाए और आईपीएल संचालन परिषद ने टूर्नामेंट के विभिन्न प्रायोजन सौदों की समीक्षा करने के लिए अगले सप्ताह अपनी बैठक बुलाई है.
यही नहीं आईपीएल की आधिकारिक ऑन-ग्राउंड प्रायोजक मोबाइल वॉलेट कंपनी पेटीएम है जिसका करार 2018-22 तक है.
पेटीएम के निवेशकों में अलीबाबा है चीनी कंपनी
बीसीसीआई अभी तक इस कोशिश में लगा हुआ था कि किसी तरह उसे आईपीएल के लिए इस साल कोई विंडो हासिल हो जाए लेकिन नए संकट ने इसे एक और सिरदर्दी में डाल दिया है.
यह मामला तो आयोजन से भी बड़ा है. हालांकि बीसीसीआई के कोषाध्यक्ष अरुण धूमल का कहना है कि बोर्ड भविष्य के किसी भी सौदे (2022 के बाद) की समीक्षा के लिए तैयार है, लेकिन वीवो के साथ मौजूदा अनुबंध के खत्म होने की संभावना नहीं है.
बीसीसीआई का वीवो के साथ करार 2022 तक के लिए है, और धूमल का कहना है कि आप जब भावनात्मक रूप से बात करते हैं, तो तर्क को पीछे छोड़ देते हैं.
हमें एक चीनी कंपनी को चीनी हितों के लिए समर्थन करने और भारत के हितों का समर्थन करने के लिए चीनी कंपनी से सहायता लेने के बीच फर्क को समझना होगा.
धूमल का यह भी कहना है कि हम जब भारत में चीनी कंपनियों को उनके उत्पाद बेचने की अनुमति देते हैं, तो जो भी पैसा वे भारतीय उपभोक्ताओं से ले रहे हैं, उसमें से कुछ राशि बीसीसीआई को ब्रांड प्रचार के लिए दे रहे हैं जबकि बोर्ड भारत सरकार को 42 फीसदी टैक्स चुका रहा है.
इसलिए यह करार चीन के नहीं, बल्कि भारत के हित में है. धूमल चाहे जो कोई भी तर्क दें लेकिन ताजा विवाद पूरी तरह भारत में चीनी कंपनियों के खिलाफ है.
आईपीएल ही नहीं बल्कि भारतीय ओलंपिक संघ (IOA) और कई भारतीय बैडमिंटन खिलाड़ियों के साथ चीन की खेल समान निर्माता कंपनी ली निंग भी जुड़ी हुई है और आईओए भी मौजूदा हालात में दबाव में आ चुका है.
धूमल का तात्पर्य है कि जब एक चीनी कंपनी से पैसा भारत में आ रहा है तो इसमें हर्ज क्या है लेकिन इस समय देश में भावनाओं का जो तूफ़ान उठा हुआ है उसमें ऐसे तर्क तिनके की तरह उड़ जाते हैं.
जब जनता अपने नेताओं से शहीद सैनिकों को लेकर सवाल पूछ रही है तो क्रिकेट एक धर्म है उसके आड़े नहीं आ सकता. बीसीसीआई को कठोर कदम उठाने के लिए मजबूर होना पड़ सकता है.