क्या खास है गोवा की हवाओं में

Goa-Beaches

चित्रों, चलचित्रों और चर्चाओं जैसे अनेक माध्यमों से हमेशा ही गोवा की एक बहुत सुकूनदायक छवि मन में तैयार थी. जब तक गोवा नहीं गए, यह समझ पाना किसी रहस्य से कम नहीं था कि आखिर ऐसा क्या है गोवा में. आखिर इतने वर्षों से भारतीय एवं अंतरराष्ट्रीय पर्यटकों की विशलिस्ट में गोवा कैसे अपनी जगह कायम रखे हुए है?

कोंकण क्षेत्र में स्थित इस राज्य का प्राथमिक उद्योग पर्यटन है. रंग बिरंगे घर, हरे भरे क्षेत्र एवं समुद्र तट – इन तीनों का संगम ही गोवा को अन्य भारतीय राज्यों से अलग और विशेष बनाता है.

करीब ढाई घंटे की हवाईयात्रा के बाद जब मैं गोवा इंटरनेशनल एयरपोर्ट से बाहर निकला, तो ऐसा लगा मानो सारे अरमान चूर चूर हो गए. झुलसाने वाली चुभती गर्मी ने मन में सालों से बनी गोवा की छवि को चुनौती दे दी. एयरपोर्ट से निकलकर, जब टैक्सी से पणजी के करीब पहुंचा, तब तक तो मन मचलने लगा, और गोवा आने के अपने निर्णय पर मैं अफ़सोस करने लगा.

एयरपोर्ट से होटल 35 किमी दूर था, और वहां तक जाने के लिए टैक्सी का किराया जैसे आसमान छू रहा था. 1200 रूपये में टैक्सी से पंजिम के करीब पहुंचकर वहीं से 600 रूपये प्रति दिन के भाड़े पर मैंने स्कूटी ले ली. जैसे-जैसे नवंबर-दिसंबर का महीना करीब आता जाता है, स्कूटी एवं बाइक का किराया भी बढ़ता जाता है. तब पहले से एडवांस में कराई गई बुकिंग भी काम नहीं आती. क्रिसमस के दौरान पर्यटक यही वाहन तिगुने दाम पर भी बड़े अराम से किराए पर ले लेते हैं.  

मेरे साथ कुछ दोस्त भी थे जिन्होंने बाइक भी ली, और हम नार्थ गोवा में स्थित अपने होटल की ओर निकल पड़े. गोवा पहुंचने के बाद, इस राइड के दौरान मैंने पहली दफा गोवा की खूबसूरती को महसूस करना शुरू किया. पिछली रात के जगे, थके हारे दोस्तों को जहां इस जलती गर्मी में होटल तक की दूरी तय कर पाना मुश्किल लग रहा था, वहीं अब ऐसा प्रतीत होने लगा कि काश ये रास्ते खत्म ही ना हों. हां, गोवा का जादू अब मुझपर भी होने लगा था.

कुछ देर आराम करने के बाद, शाम को हम सैर पर निकले. हमारा होटल कलंगूट बीच के नज़दीक था. यह गोवा का सबसे बड़ा बीच है.

होटल से बीच के रास्ते में एक बाजार है, जहां रंग बिरंगे कपड़े, समुद्री सीपों से बने गहने, हैट्स आदि की दुकानों के साथ अनेक स्पा पार्लर एवं रेस्तरां भी मौजूद हैं. इन गलियों के लगभग हर केफे में बजता पॉप म्यूजिक मनोदशा को प्रफ्फुलित करता है. बीच पर सोने जैसी रेत और चित्तीदार पानी की लहरें तन मन में ताजगी भर देती हैं. यह सब मिलकर इस जगह को एक शानदार गंतव्य बनाते हैं. अपने मनमोहक सौंदर्य की वजह से ‘समुद्र की रानी’ कहलाने वाले इस बीच पर समय कब और कैसे बीत गया पता ही नहीं चला.

अंधेरा होते-होते हर थोड़ी दूर पर अलग-अलग केफे एवं रेस्तरां बीच के किनारे कैंडल लाइट डिनर की व्यवस्था करते नज़र आने लगे. हर रेस्तरां की एक टेबल सजने लगी जहां जा कर आप अपनी मनपसंद मछली चुन सकें. हर रेस्तरां के आगे तंबू भी सजने लगा और उनके आपस में जैसे पॉप म्यूजिक की जंग छिड़ गई.

गोवा का यह प्रमुख समुद्र तट वाटर स्पोर्ट्स के लिए भी मशहूर है. पैरासेलिंग, वाटर सर्फिंग, बनाना राइड एवं जेट स्कीइंग जैसे स्पोर्ट्स के पैकेज 500 रूपए से शुरू हो जाते हैं. यदि महीना दिसंबर का हो, तो हर चीज़ की तरह इसका दाम भी कई गुणा बढ़ जाता है. इन्हीं कारणों की वजह से कह सकते हैं कि गोवा जाने के लिए यदि बजट कम हो, तो अक्टूबर या नवंबर के महीने सर्वोत्तम होते हैं. यदि बजट अधिक हो तो, दिसंबर का महीना सबसे बढ़िया हो सकता है, जब क्रिसमस और न्यू ईयर बड़े धूम धाम से मनाया जाता है. चर्चित सनबर्न फेस्टिवल भी इसी दौरान आयोजित किया जाता है.

कलंगूट बीच जैसे नार्थ गोवा में स्थित हर बीच की सबसे खास बात है यहां की जैज़ी पार्टियां, वाटर स्पोर्ट्स एवं स्ट्रीट फ़ूड. अगले दो दिन हमने नार्थ गोवा में ही बिताए. इस दौरान हम मापुसा रोड पर स्थित, सफ़ेद रेत एवं काली चट्टानों के लिए जाने जाने वाले, वागातोर बीच, एवं परनेम में स्थित, छोटे-छोटे कछुओं और केकड़ों के लिए जाने जाने वाले, मोर्जिम बीच भी गए. इसके अलावा मशहूर बागा बीच, अंजुना बीच, अंजुना मार्केट एवं सेंट एंथनी चर्च भी हमारे चेकलिस्ट में मौजूद थे.

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नार्थ गोवा छोड़ने से पहले एक ख्वाहिश उस किले को देखने की भी थी, जहां ‘दिल चाहता है’ फिल्म के कुछ आइकनिक दृश्यों की शूटिंग हुई. बिना कुछ ज्यादा सोचे समझे हम निकल पड़े चपोरा फोर्ट, और इस ट्रिप की शायद यही एक गलती कर बैठे. जब किले पर पहुंचे तो वहां कुछ कंस्ट्रक्शन का कम चल रहा था. धूल धक्कड के बीच चुभती गर्मी में भी किले के ऊपर जाने का न जाने हमपर क्या सुरूर सवार था. रेत एवं सीधी चट्टानों के कारण चढाई थोड़ी मुश्किल तो थी, परंतु ऊपर तक की दूरी बहुत अधिक नहीं थी. सबसे अधिक निराशा तब हुई जब हम किले के ऊपर पहुंच गए. बंजर ज़मीन पर हर जगह टूटी फूटी बोतलों और कचड़े के ढेर ने उस किले की सुंदरता के साथ ‘दिल चाहता है’ मूवी से जुड़ी उम्मीदों को भी फीका कर दिया.       

यदि कम दिनों के लिए जाना हो तो यह तय कर पाना मुश्किल होता है कि किस जगह कितना समय व्यतीत करें. ऐसे में यदि कम समय में ज्यादा जगहें घूमना चाहें तो अपनी इटीनेरी उस हिसाब से बनाएं. बेहतर यह होगा कि चुनिंदा जगहों पर जाएं, और वहां चैन से ज्यादा समय बिता कर बीच साईट का भरपूर आनंद उठाएं. यदि नार्थ गोवा और साउथ गोवा के बीच चुनाव मुश्किल हो रहा हो तो ध्यान रखें कि यदि कम बजट में पार्टी करने का मूड हो तो नार्थ गोवा का चुनाव बेहतर होगा, परंतु  यदि बजट भी ज्यादा हो और पार्टी से अधिक शांतिपूर्ण माहौल का लुत्फ़ उठाना हो तो साउथ गोवा का चुनाव बेहतर होगा. साउथ गोवा और नार्थ गोवा, दोनों का ही मौसम ट्रॉपिकल है.

ट्रिप के तीसरे दिन हरे भरे रास्तों से गुज़र कर हम साउथ गोवा की ओर निकले. ये रास्ते वाकई जगहों की दूरी को कम करते हैं. लगभग हर रास्ता तटीय क्षेत्रों से हो कर गुज़रता है. इन रास्तों की सबसे दिलचस्प बात ये है कि कई दफा आप कुछ अनजाने, एकांत बीच का भी अन्वेषण कर लेते हैं. भीड़ से अलग, इन बीच पर चिल करने का अपना अलग ही मज़ा है.

शांत और प्राचीन बीचों का लुत्फ़ उठाने के लिए पालोलेम बीच, बटरफ्लाए बीच और मजोर्दा बीच अनुकूल हैं. नार्थ गोवा के मुकाबले यहां का खान पान एवं स्टे भले ही अधिक महंगा है, परानु नार्थ गोवा की लोकप्रियता की वजह से ये बीच ज्यादा खंगाली नहीं गई है. इन शानदार छिपे हुए बीचों की सुंदरता शांति और आनंद की एक आभा प्रस्तुत करती है.

पालोलेम एवं अन्य बीचों की एक खास बात यह भी है कि यहां के समुद्र तट काफी साफ हैं. साफ़ सफेद रेत और नीले पानी के साथ दोनों तरफ सुंदर पहाड़ियों से बना वर्धमान आकार का समुद्र तट मन मोह लेता है. यहां तट में एक क्रमिक ढाल है, जिसकी वजह से हम समुद्र की काफी गहराई तक जा पाए. क्योंकि पानी इतना साफ़ है, छोटे बच्चों के लिए भी यह बीच अधिक सुरक्षित है. साऊथ गोवा के भव्य चर्च नार्थ गोवा के चर्चों की तुलना में नए हैं.


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