भारत बोलेगा

मानसून में वेस्टर्न घाट का नज़ारा

यूनेस्को व्लर्ड हेरिटेज साइट वेस्टर्न घाट शह्यादरी

अनवरत बारिश और मानसून की हरियाली के सौंदर्य का नजारा सही में तो जंगल में ही दिखता है. और यह दिखेगा आपको वेस्टर्न घाट पर स्थित मुंबई से 100 किलोमीटर पूरब भीमशंकर वन्य जीव अभ्यारण्य में.

सावन के महीने में जब मानसून अपने पूरे शबाब पर रहता है, खासकर सितंबर के अंतिम दिनों में, जंगली जहरीले कीड़े, फिसलन से भरे पत्थर और अनवरत हो रही बारिश के बावजूद वेस्टर्न घाट की खूबसूरती का कोई जोड़ नहीं होता.

भारत के पश्चिमी तट पर स्थित पर्वत श्रृंखला को पश्चिमी घाट या सह्याद्रि कहते हैं. दक्‍कनी पठार के पश्चिमी किनारे के साथ-साथ यह पर्वतीय श्रृंखला उत्‍तर से दक्षिण की तरफ 1600 किलोमीटर लंबी है. विश्‍व में जैविकीय विवधता के लिए यह बहुत महत्‍वपूर्ण है और इस दृष्टि से विश्‍व में इसका 8वां स्थान है. यह गुजरात और महाराष्ट्र की सीमा से शुरू होती है और महाराष्ट्र, गोवा, कर्नाटक, तमिलनाडु तथा केरल से होते हुए कन्याकुमारी में समाप्‍त हो जाती है. वर्ष 2012 में यूनेस्को ने पश्चिमी घाट क्षेत्र के 39 स्‍थानों को विश्व धरोहर स्‍थल घोषित किया.

मूसलाधार बारिश से बेजान और कड़े पत्थरों के इस घाट का हर कोना तक मानसून में हरा-भरा हो जाता है. मानो हर कोने में जिंदगी आ गई हो.

यूनेस्को व्लर्ड हेरिटेज साइट

यूनेस्को व्लर्ड हेरिटेज साइट की सूची में वेस्टर्न घाट को दुनिया के आठ जैव-विविधता से आच्छादित हॉटस्पॉट में शामिल किया गया है.

यह भारत के पश्चिमी तट, गुजरात से लेकर दक्षिण के केरल तक 1600 किलोमाटर में फैला हुआ है. बाघ, चीता, ब्लैक पैंथर और दुनिया में सबसे ज्यादा पाए जाने वाले जंगली एशियाई हाथियों का घर यहीं है. 

रात की अलग ही खूबसूरती

इस जंगल की खूबसूरती में एक और खास चीज है. जंगल रात में जुगनुओं से चमकता रहता है. जमीन की हरियाली से निकलती है यह हरी रोशनी.

दरअसल यह पेड़ों के छाल और टहनी के फंगस से बने जुगनू होते हैं जो बरसात के महीने में चमकते रहते हैं. हालांकि ऐसे जुगनू और भी जंगल में पाए जाते हैं, मगर यहां वेस्टर्न घाट पर यह ज्यादा दिखाई पड़ते हैं.

इतना ही नहीं, जंगल की लकड़ियों और मशरुम तक में हरी चमक रहती है. कहा जाता है कि फंगी यानि कवक की एक लाख से ज्यादा प्रजाति होती है. इनमें 70 से ज्यादा प्रजाति चमकीली होती है. वेस्टर्न घाट के जंगल में कई प्रजातियां पायी जाती हैं.  

आपको जानकर हैरानी होगी कि एक रोमन पर्यावरणविद – पिंटी द इल्डर ने एक जगह लिखा है कि यूरोप में पहली शताब्दी में आदिवासी जंगल में रास्ता खोजने के लिए चमकने वाली लकड़ी का इस्तेमाल करते थे.

अमेरिकी अविष्कारक डेविड बुशनेल ने इसी चमकने वाली लकड़ी से एक मैरिन का निर्माण किया था ताकि पानी में रोशनी से रास्ता का पता चल सके.


भारत बोलेगा: जानकारी भी, समझदारी भी
Exit mobile version