चीन जैसे विशाल देश को हम भले ही अपना शत्रु मानें परंतु कबीर तो वहां भी पैदा होते हैं. जी हां. हन हन चीन में पैदा हुए लेकिन बात करना चाहते हैं पूरी दुनिया से. क्योंकि वो अपना दर्शन सिर्फ चीन को ही नहीं अपितु सम्पूर्ण विश्व को देना चाहते हैं. तभी तो उन्होंने एक उपन्यास लिखा – ‘आई वांट टू टॉक टू वर्ल्ड’. वो चाहते तो लिखते — ‘आई वांट टू टॉक टू ओनली चाइना गवर्नमेंट’. लेकिन उन्होंने सम्पूर्ण विश्व मंच पर आने की बात कही. क्या वजह है ? क्यों ऐसा कहा उन्होंने ? यह भले ही विश्व सत्ता के लिए चिंता का विषय हो परन्तु विश्व की मानवजाति के लिए चिंतन का विषय है.
भारत के कबीर कुछ अलग थे. वो जीवित रहने के लिए कम्बल बेचते थे. साथ ही साथ सामाजिक विकृतियों का विरोध भी करते थे. परंतु चीन के कबीर कुछ अलग हैं. ये कार दौड़ के चैम्पियन हैं, प्रतिबंधित उपन्यासकार हैं, साथ ही साथ दार्शनिक भी हैं. पत्रिका निकालते हैं तो रातों रात सभी प्रतियां बिक जाती हैं मगर सत्ता उस पत्रिका को प्रतिबंधित कर देती है. आखिर ऐसा क्या कहते हैं हन हन कि सत्ता उनके विरोध में खड़ी प्रतीत होती है. उम्र मात्र 27 वर्ष हैं मगर बात ऐसी कि दुनिया भर के सत्ताधारी इनसे परेशान !
क्या वजह है कि ब्लॉग पर लिखते हैं तो एक साथ तीन सौ लाख लोग उनके ब्लॉग को देखने के लिए हिट करते हैं. आखिर ऐसा क्या है उनमें जो हमें उन्हें आधुनिक कबीर कहना पड़ रहा है ! उनमें ऐसा क्या है कि टाइम पत्रिका उन्हें सौ बड़े लोगों में रखकर उन्हें वर्ष का सितारा घोषित कर देती है ! यह सभी बातें सिर्फ कबीर के लिए आज की तारीख में लागू होती है. सिर्फ और सिर्फ आज कबीर ही होते तो उनके लिए यह घटना घटित होती.
आज विश्व एक गांव में तब्दील हो गया है. विश्व पर राज करने वाले विश्व में रहने वाली समस्त मानवजाति के बीच किस प्रकार कबीर अथवा हन हन को पहचान लेते हैं ! वो कौन सी दृष्टि है जो सता के पास है परंतु जनता के पास नहीं ! हमें प्रणाम करना चाहिए चीन की जागृत जनता को जिनकी वजह से आज भी हन हन जिन्दा है.
आप को मालूम होगा कि चीन की क्रूर सता नें वहां के दस हजार से भी ज्यादा विद्यार्थियों को रोड रोलर से कुचल दिया था. वैसी सत्ता के समक्ष हन हन किस तरह से अपने विचारों को रख रहे हैं कि जनता की तीसरी आंख उन्हें अपने में समाहित कर उन्हें इतना प्रतिष्ठित कर दे रही है कि इतनी क्रूर सत्ता भी हन हन को छू नहीं पा रही. यह एक यक्ष प्रश्न है जनाब !
आज चीन विश्व राजनीति की आंखों में किरकिरी जैसा है. हो सकता है कि इसका भी लाभ हन हन को मिल रहा हो. परंतु हन हन के उस अस्तित्व को प्रणाम करना ही होगा जो आज भी जिन्दा है और इतना जिन्दा है कि आज विश्व मंच पर उनसे बड़ा कोई नहीं है, कोई ऐसा सूरज दिखाई नहीं पड़ता जो लाख विरोधों और अन्धकार के बावजूद अपनी रौशनी फैलाने में सक्षम है, और ऐसी रौशनी जो सिर्फ चीन ही नहीं विश्व को रौशन करने में सक्षम है. मैं भी उनके विचार नहीं जानता मगर ऐसा प्रतीत होता है मानों दुनिया से हन हन कह रहे हैं कि … “भूतकाल में गरल भरा है, तुम्हें भविष्य बुलाता है. द्वेष में डूबे मानव को, वह देश प्रेम सिखलाता है.”
– अभिषेक मानव