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मानवीय सहायता अभियानों पर संकट

संयुक्त राष्ट्र (United Nations) की उप प्रमुख आमिना जे मोहम्मद ने सुरक्षा परिषद (Security Council) में कहा है कि दुनिया भर में रक्त रंजित संघर्षों और अशांत हालात में बहुत तेज़ी देखी गई है जिनके कारण मानवीय सहायता (humanitarian efforts) कार्यक्रम संकटों का सामना कर रहे हैं, और संघर्षों वाले क्षेत्रों में, आम आबादी को इसकी भारी क़ीमत चुकानी पड़ रही है.

उन्होंने यूएन प्रमुख एंतोनियो गुटेरेश की तरफ़ से सुरक्षा परिषद को सम्बोधित करते हुए हालात की एक बेहद उदास और ग़मगीन तस्वीर पेश करते हुए कहा कि इथियोपिया के टीगरे क्षेत्र में आम लोगों को मौत के घाट उतारा जा रहा है, मनमाने तरीक़े से गिरफ़्तारियां हो रही हैं, लोग बन्दी बनाए जा रहे हैं, जबरन विस्थापन हो रहा है, बच्चों के ख़िलाफ़ बड़े पैमाने पर हिंसा हो रही है.

उन्होंने अफ़ग़ानिस्तान, सीरिया, यमन में घातक और क्रूर हमलों का ज़िक्र करते हुए कहा कि लगभग दो करोड़ लोग, सीधे तौर पर भुखमरी के हालात का सामना कर रहे हैं.

उन्होंने कहा, “हम अभूतपूर्व रूप से कठिन हालात का सामना कर रहे हैं, जहां मानवीय ज़रूरतें बेतहाशा बढ़ी हैं, जैसा पहले कभी नहीं देखा गया.”

इस वर्ष संयुक्त राष्ट्र और उसके साझीदार संगठन, क़रीब 16 करोड़ लोगों की मदद करने के लिए प्रयासरत हैं और ये संख्या अभी तक की सबसे ज़्यादा है.

मानवीय संकटों का तूफ़ान, बिना रुके चलते रहने वाले हमलों के कारण और भी जटिल हो रहा है और ये हमले मानवीय सहायता और चिकित्साकर्मियों पर हो रहे हैं.

देशों की सरकारें ही मानवीय सहायता सामग्री की आपूर्ति करने के लिये प्रणालियां बनाती हैं, इसलिए ये बहुत ज़रूरी है कि सरकारें ही इसमें सहयोग दें, ना कि बाधाएं खड़ी करें. अतः, सुरक्षा परिषद को स्कूलों व अस्पतालों पर हमले तत्काल रोके जाने के लिए, अपने प्रभाव का इस्तेमाल करना होगा.

यूएन उप महासचिव आमिना जे मोहम्मद ने मंत्रियों व राजदूतों की बैठक में कहा, “महासचिव इस परिषद से आग्रह करते हैं कि नागरिक आबादी, मानवीय सहायता व चिकित्साकर्मियों की हिफ़ाज़त के लिए जो अनगिनत प्रस्ताव पारित किये गए हैं, उनका पालन करने के लिए, ये परिषद मज़बूत व तत्काल कार्रवाई करे.”

Humanitarian-efforts-by-United-Nations

घटनाओं में बढ़ोत्तरी

आमिना जे मोहम्मद ने कहा कि गोलीबारी, शारीरिक व यौन हमले, अपहरण व अन्य तरह के हमलों के कारण मानवीय सहायता संगठन प्रभावित हो रहे हैं, और इस तरह की घटनाओं में, वर्ष 2001 के बाद से कम से कम दस गुना बढ़ोत्तरी हुई है.

उन्होंने कहा, “जब से इस परिषद ने पांच वर्ष पहले स्वास्थ्य देखभाल व्यवस्थाओं, चिकित्सा कर्मियों और मरीज़ों पर होने वाले हमलों के लिए दण्डमुक्ति का ख़ात्मा करने वाला अहम प्रस्ताव पारित किया था, तब से इन सभी पर हज़ारों हमले हुए हैं.”

इस बीच, ज़रूरमन्द लोगों तक अति आवश्यक मानवीय सहायता पहुंचाया जाना और भी ज़्यादा कठिन होने लगा है.

जानबूझकर देरी

कुछ देशों में स्थानीय अधिकारी मानवीय सहायता कर्मियों के आवागमन व राहत सामग्री के परिवहन पर पाबन्दियां लगाते हैं, वीज़ा और सीमाओं व जांच चौकियों पर औपचारिकताएं पूरी करने में देर लगाते हैं.

अन्य तरह की बाधाओं में मानवीय सहायता सामान पर टैक्स की उच्च दरें और भारी भरकम शुल्क लगाया जाना भी शामिल है.

वैस तो, हर देश को आतंकवाद के ख़िलाफ़ कार्रवाई करने की ज़रूरत है, मगर ये भी सुनिश्चित करना उनकी ज़िम्मेदारी है कि आतंकवाद-निरोधक प्रयासों में, मानवीय सहायता अभियानों पर नकारात्मक असर ना पड़े.


भारत बोलेगा: जानकारी भी, समझदारी भी
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