दुनिया भर में, 10 से 19 वर्ष की उम्र के हर सात में से एक बच्चे मानसिक समस्याओं के साथ जीवन जी रहे हैं.
दुनिया भर में बच्चों की स्थिति के बारे में जारी एक ताज़ा रिपोर्ट में कहा गया है कि कोरोनावायरस संकट से पहले भी, बच्चे व किशोर, मानसिक स्वास्थ्य स्थितियों के बोझ तले दबे हुए थे.
यूएन बाल एजेंसी की इस महत्वपूर्ण रिपोर्ट में कहा गया है कि हर साल लगभग 46 हज़ार बच्चे या किशोर, आत्महत्या करके अपनी जान दे रहे हैं.
इसके बावजूद मानसिक स्वास्थ्य ज़रूरतों और मानसिक स्वास्थ्य क्षेत्र के लिए उपलब्ध धन के बीच गहरा अंतर है.
गौरतलब है कि सरकारों के स्वास्थ्य बजटों का केवल दो प्रतिशत हिस्सा ही, मानसिक स्वास्थ्य सम्बन्धी ज़रूरतों पर ख़र्च किया जाता है.
बहुत बड़े संकट का अंदेशा
यूनीसेफ़ की कार्यकारी निदेशक हैनरीएटा फ़ोर का कहना है कि पिछले 18 महीने, बच्चों पर बहुत भारी रहे हैं. उनके अनुसार, “देशों में राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन और आवागमन पर महामारी सम्बन्धी प्रतिबन्ध लागू होने के कारण, बच्चों को अपने जीवन के महत्वपूर्ण वर्ष, अपने परिवारों, दोस्तों, कक्षाओं और खेलकूद से दूर और वंचित रहते हुए गुज़ारने पड़े हैं जबकि ये सभी, बचपन का बहुत अहम हिस्सा होते हैं.”
“इसका असर बहुत व्यापक है, और ये स्थिति, बहुत विशाल संकट की एक झलक भर है. यहां तक कि महामारी शुरू होने से पहले भी, बहुत से बच्चों को, मानसिक स्वास्थ्य के ऐसे मुद्दों के भारी बोझ तले दबे रहकर ज़िन्दगी गुज़ारनी पड़ रही थी जिनका कोई समाधान निकालने की कोशिशें नहीं हुईं.”
सवाल यह उठता है कि इन अति महत्वपूर्ण ज़रूरतों पर ध्यान देने के लिए उचित सरकारी संसाधन क्यों नहीं लगाए जा रहे हैं.
नतीज़तन, अब जबकि महामारी तीसरे वर्ष में दाख़िल हो रही है, बच्चों व किशोरों के मानसिक स्वास्थ्य और उनके रहन-सहन पर बहुत भारी नकारात्मक प्रभाव जारी है.
एक अच्छे नागरिक होने के नाते आपको सुनिश्चित करना है कि बच्चे अपने दैनिक जीवन, शिक्षा, मनोरंजन और खेलकूद में आगे बढ़ें और किसी भी परिस्थिति में भयभीत, क्रोधित और भविष्य के बारे में चिन्तित ना हों.
ध्यान रहे कि मानसिक स्वास्थ्य भी सम्पूर्ण शारीरिक स्वास्थ्य का हिस्सा है – हम इसे किसी तरह नज़रअंदाज़ नहीं कर सकते.