रूस और फ़िलीपीन्स के दो पत्रकारों को वर्ष 2021 के नोबेल शांति पुरस्कार (Nobel Peace Prize) से सम्मानित किया गया है. ये पुरस्कार इस सच्चाई को मान्यता देता है कि एक स्वतंत्र प्रेस शांति, न्याय, टिकाऊ विकास और मानवाधिकारों के लिए अनिवार्य है. स्वतंत्र व निष्पक्ष संस्थान निर्माण की एक बुनियाद भी है.
नोबेल शांति पुरस्कार पाने वाली फ़िलीपीन्स की पत्रकार हैं – मारिया रेस्सा (Maria Ressa) जो ऑनलाइन समाचार संगठन – रैपलर (Rappler) की सह-संस्थापक और मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं.
पुरस्कार पाने वाले एक अन्य पत्रकार हैं रूस के दिमित्री मुरातोफ़ (Dmitry Muratov), जो नवाया ग़ज़ेटा अख़बार के मुख्य सम्पादक और सह-संस्थापक हैं.
इस उपलब्धि पर यूएन महासचिव एंतोनियो गुटेरेश का बयान महत्वपूर्ण है जिसमें उन्होंने कहा कि, “कोई भी समाज, ऐसे पत्रकारों के बिना स्वतंत्र और न्यायसंगत नहीं हो सकता जो, व्यवस्थाओं की ग़लतियों की जांच-पड़ताल कर सकें, नागरिकों तक सही जानकारी व सूचनाएं पहुंचाएं, सार्वजनिक हस्तियों को जवाबदेह ठहराएं और सत्ता के सामने सत्य बोलें.”
इन पुरस्कारों की घोषणा ऐसे समय हुई है जब जागरूक मीडिया के ख़िलाफ़ भड़काऊ बयानबाज़ी और सच्चे मीडियाकर्मियों के ख़िलाफ़ हमले चारों तरफ उभार पर हैं.
दिमित्री मुरातोफ़ का अख़बार, रूस में सत्तारूढ़ अभिजात्य वर्ग और विशेष रूप से राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की मुखर आलोचना करने वाले, चंद अख़बारों में से एक है. इस अख़बार को, कथित रूप से धमकियों और उत्पीड़न का निशाना बनाया जा रहा है, ख़ासतौर से, चेचन्या में मानवाधिकार हनन सम्बन्धी उसकी कवरेज के लिए.
फ़िलीपीन्स की पत्रकार मारिया रेस्सा, लगभग तीन दशकों से प्रेस की स्वतंत्रता को बढ़ावा देती रही हैं, जिस कारण, वो कभी-कभी हमलों व दुर्व्यवहार का निशाना भी बनाई गई हैं. 58 वर्षीय मारिया रेस्सा को, फ़िलीपीन्स के राष्ट्रपति रॉड्रिगो डुएर्टे की और उनके ड्रग युद्ध की आलोचना करने वाले लेख प्रकाशित करने पर, अनेक आपराधिक आरोपों व जांच-पड़ताल का भी सामना करना पड़ा है.
क्या आप जिंदा पत्रकारों के ख़िलाफ़ हिंसा और उनके उत्पीड़न में बढ़ोत्तरी नहीं देख रहे हैं? ये निजी रूप में, और ऑनलाइन मंचों पर लगातार हो रहा है. अक्सर महिला पत्रकारों को, विशेष दुर्व्यवहार का निशाना बनाया जाता है.
माहौल ऐसा है कि टेक्नोलॉजी ने, सूचना के आदान-प्रदान और फैलाव के तरीक़े को पूरी तरह से बदल दिया है, और अक्सर नई टेक्नोलॉजी के इन तरीक़ों का ग़लत इस्तेमाल, आम जनता की राय को नकारात्मक रूप में प्रभावित करने और हिंसा व नफ़रत को ईंधन मुहैया कराने के लिए किया जा रहा है.
गाठ दो वर्षों में ही कोविड-19 महामारी के दौर में, अक्सर झूठ के ज़रिये सच्चाई को दबाने की कोशिशें हुई हैं. हम सभी की कोशिश होनी चाहिए कि इस चलन को एक नई सामान्य स्थिति नहीं बनने दिया जाए.
नोबेल समिति अध्यक्ष बेरिट रीस-एंडर्सन के अनुसार, “स्वतंत्र और तथ्य आधारित पत्रकारिता सत्ता के दुरुपयोग, झूठ और युद्ध के दुष्प्रचार से बचाने का काम करती है.”
भारत बोलेगा की तरफ से पुरस्कार विजेताओं को बधाई. आइए, प्रेस स्वतंत्रता के लिए हम, अपना संकल्प एक बार फिर मज़बूत करें, जिंदा पत्रकारों की बुनियादी भूमिका को पहचान दें और एक मुक्त, स्वतंत्र और विविधतापूर्ण मीडिया को समर्थन देने के लिए, हर स्तर पर अपने प्रयास मज़बूत करें.
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