लोगों को हिंसा (violence), असुरक्षा (insecurity) और जलवायु परिवर्तन (climate change) के प्रभावों के कारण होने वाले प्राकृतिक हादसों से बचने के लिए भागना पड़ रहा है. यह एक अलग तरह की त्रासदी है जिससे दुनिया भर में, जबरन विस्थापित होने वाले लोगों की संख्या आठ करोड़ 40 लाख से भी ज़्यादा हो गई है.
संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी एजेंसी (UNHCR) ने यह आंकड़ा साझा करते हुए बताया है कि दुनिया के अनेक स्थानों पर बहुत सारे संघर्ष व लड़ाइयां जारी हैं और लोगों को उनसे बचने के लिए, अक्सर देशों के भीतर ही विस्थापित होना पड़ रहा है.
जाहिर है अन्तरराष्ट्रीय समुदाय, हिंसा, प्रताड़ना, अत्याचार, और मानवाधिकार हनन को रोकने में नाकाम हो रहा है, जिसके कारण लोगों को इस स्थिति का सामना करना पड़ रहा है. विस्थापित होने वाले सबसे ज्यादा अफ़्रीका क्षेत्र में हैं.
इस बीच, म्यांमार और अफ़ग़ानिस्तान में हिंसा में बढ़ोत्तरी के कारण भी, अपने घर छोड़ने के लिए मजबूर होने वाले लोगों की संख्या में इज़ाफ़ा हुआ है.
इस बढ़ती त्रासदी को नियंत्रित करने के लिए अन्तरराष्ट्रीय समुदाय को, शांति बहाल करने के लिए अपने प्रयास दोगुना बढ़ाने होंगे. साथ ही, ये भी सुनिश्चित करना होगा कि विस्थापित लोगों व उनकी मदद करने वाले मेज़बान समुदायों के लिए भी पर्याप्त संसाधन उपलब्ध हों.
गौर करें तो युद्धक गतिविधियों, कोविड-19 महामारी, निर्धनता, खाद्य असुरक्षा और जलवायु आपदा के घातक मिश्रण ने, विस्थापित लोगों की तकलीफ़ें बहुत बढ़ा दी है. विस्थापितों में ज़्यादातर लोग विकासशील देशों में शरण लिए हैं.
इस कारण पनाह देने का बोझ अपने कन्धों पर उठा रहे छोटे देश संसाधन की मार सह रहे हैं. साथ ही कोविड महामारी के कारण जगह-जगह तमाम पाबंदियां भी लगी हुई हैं जिससे भी विस्थापितों को कठिनाई का सामना करना पड़ रहा है.
ऐसे में ये बहुत ज़रूरी है कि सक्षम अन्तरराष्ट्रीय समुदाय की तरफ़ से, विस्थापितों व शरणार्थियों की मदद करने वाले मेज़बान समुदायों और देशों को, ज़रूरी सहायता व समर्थन मुहैया कराया जाए.