नस्लभेद: गूंज रही है नफ़रत

अफ़्रीकी मूल के लोगों, अल्पसंख्यक समुदायों, आदिवासी लोगों, प्रवासियों, शरणार्थियों, विस्थापित लोगों, और अन्य अनेक समूहों के लोगों को आज भी, नफ़रत (hate), कलंकित मानसिकता, बलि का बकरा बनाए जाने के चलन, भेदभाव, और हिंसा का सामना करना पड़ता है.

हमें अनेक पीढ़ियों तक, भेदभाव और बहिष्करण जारी रहने परिणामों को उलटना होगा – स्वभाविक रूप से उनके सामाजिक और आर्थिक आयामों सहित, और ऐसा, मुआवज़ा सुनिश्चित करने वाली न्याय प्रणालियों के ज़रिये किया जा सकता है.

racism and discrimination along with hate prevailing everywhere

संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनिटो गुटेरेश ने इस समस्या को रेखांकित करते हुए कहा है कि ख़ुद से भिन्न पहचान के लोगों से नफ़रत करना, लैंगिक भेदभाव, नफ़रत से भरे षडयंत्रों की बातें, श्वेत वर्चस्व और नव-नाज़ी विचारधारााएं उफ़ान पर हैं – जो घृणा से गूंजते चैम्बरों में और भी ज़्यादा बढ़ रही हैं.

कड़ी सर्वविदित

यूएन प्रमुख ने कहा कि छोटे-छोटे उल्लंघनों से लेकर, लोगों के व्यक्तिगत क्षेत्र में हस्तक्षेप किए जाने तक, मानवाधिकारों पर हमले हो रहे हैं.

ढांचागत नस्लभेद और व्यवस्थागत अन्याय, आज भी लोगों को उनके बुनियादी मानवाधिकारों से वंचित करते हैं, और नस्लभेद व लैंगिक असमानता के बीच सम्बन्ध व कड़ी, जगज़ाहिर है.

उन्होंने ध्यान दिलाया कि भेदभाव के कुछ सबसे भीषण प्रभावों की तकलीफ़, महिलाओं को उठानी पड़ती है. और दुनिया, यहूदी विरोध, मुसलमानों के ख़िलाफ़ बढ़ती नफ़रत, और अल्पसंख्यक ईसाइयों के साथ दुर्व्यवहार का माहौल देख रही है.

यूएन महासचिव ने, दुनिया भर में, हर किसी से, भेदभाव, नफ़रत भरी भाषा, और निराधार दावों व आरोपों की निन्दा करने का आग्रह किया है, क्योंकि जो तत्व, आज इस तरह के विचारों को आगे बढ़ा रहे हैं, वो “नस्लभेद के ख़िलाफ़ हमारी ज़रूरी लड़ाई” की अहमियत को कम करते है.


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