सर्दियों में मीठी धूप सेंकते हुए दरी पर बैठ कर मूंगफली खाने का जो आनंद है वो और कहां मिलता है!
सर्दियां तब भी होती थीं, जब हम छोटे थे और सर्दियां अब भी होती हैं. वक़्त के साथ सब कुछ बदलता है, सो ये सब भी बदल गया है.
बाज़ार में एक चारपाई दिखी तो बचपन की यादें ताज़ा हो गईं. दादी की गोद में बैठ कर सुनहरी धूप का आनंद और न जाने क्या क्या और कितनी बातें.
अब न दादी हैं, न ही वो मज़ा और न वो मूंगफली के दाने.
अब हम घरों के अंदर हीटर की गर्मी में कंप्यूटर पर होते हैं या फ़ोन पर बातें कर रहे होते हैं.
फेसबुक पर मूंगफली की तस्वीर डाल दो तो सैकड़ों लाइक्स हो जाएंगे, जिसे देखकर नई जेनेरेशन कहती है, ‘उफ़ कुछ भी डाल देते हैं.’
सेल्फी के ज़माने में धूप में बैठ कर मूंगफली खाना जैसे लुप्त हो गया है.
पुरानी बातें गायब इसलिए भी होती जा रही हैं क्योंकि अब हमारी दादियां बड़े आंगन वाले घरों में नहीं रहतीं. अब दादी भी फेसबुक और स्काइप पर हैं, एक पौश फ्लैट में.
दादी भी रे-बैन लगा कर सेल्फी पोस्ट करती हैं. वो फिर फ़ोन से पूछती हैं, ‘बेटा, जो पिक्चर मैंने पोस्ट की है उसमें तुम्हें टैग कैसे करूं? समझ नहीं आ रहा है.’
मॉडर्न दादी और नानी कोई रॉक स्टार से कम नहीं हैं. पैंट शर्ट में गाड़ियां चलाती हैं, एटीएम खुद जाती हैं, ऑनलाइन बैंकिंग करती हैं, मोबाइल से ई-शौपिंग करती हैं और दोस्तों के साथ पिक्चर देखने हॉल में भी जाती हैं.
बड़ी कातिल हैं आजकल की दादियां.
अब बताओ कौन सी गोदी और कौन सी मूंगफली…! लेकिन, हां, एक बात फिर भी नहीं बदली.
बच्चे ज़रा मसरूफ हो जाएं और दादी को कुछ समय के लिए अनदेखा अनसुना कर दें, तो वे नाराज़ अब भी उसी स्टाइल में होती हैं.
एक दो ताने सुनाएंगी, भुन भुन करती यहां वहां दरवाज़े पीटेंगी और खाना कमरे में ले जाकर खायेंगी.
समझ लीजिए नाराज़ हैं भाई. और जितनी नाराजगी उतना ही प्यार. एक ही चीज़ तो मांगती है दादी, हमसे – समय.
ज़माना कोई भी हो, हमारी दादियां हमेशा जान न्योछावर करती हैं.